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                         DEPARTMENT OF SANSKRIT


Introduction                       Course Outcomes B.A                     Course Outcomes M.A                   Faculty               Gallery


 

एम.ए. प्रथमं षाण्मासिकम्

एम.ए. प्रथम सिमेस्टर

प्रथम प्रश्नपत्र-वैदिकसूक्त और निरुक्त

1. वैदिक सूक्त

2. यास्क. निरूक्त प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय के प्रथम-द्वितीय पाद वेदों से परिचित कराना एवं वैदिक परम्पराओं का अवलोकन कर तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं से परिचित कराना।

- तत्कालीन सुव्यवस्थित परम्पराओं को वर्तमान समाज के लिए उपयोगी बनाना।

-वैदिक मन्त्रों के ज्ञान द्वारा बच्चों में एक नई ऊर्जा प्रदान करना। -वेदों के ज्ञान से ज्ञान से अवगत कराना। -वेदिक परम्पराओं को सुरक्षित रखना। -वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता से विश्व को अवगत कराना।

 -वैदिक शब्दों की व्याकरणात्मक व्याख्या से छात्रों को अवगत कराना।

द्वितीय प्रश्नपत्र-नाटक और गद्यकाव्य

 1. उत्तररामचरित

 2. हर्षचरित प्रथम उच्छ्वास -भगवान राम के उत्तर चरित से अवगत कराना।

-भवभूति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अवगत कराना।

-बाणभट्ट के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अवगत कराना

-छात्रों को संस्कृत के ज्ञान द्वारा उनमें नैतिकता एवं उच्च आदर्शों को स्थापित करना एवं छात्रों के व्यक्तित्व का विकास कर उनके अन्दर भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम उत्पन्न करना।

तृतीय प्रश्नपत्र-भारतीय दर्शन

 1. केशवमिश्र. तर्कभाषा प्रामाण्यवादपर्यन्त

 2. ईश्वरकृष्ण. सांख्यकारिका

-छात्रों को भारतीय दर्शन (सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक, एवं मीमांसा) से अवगत कराना। तथा विविध दर्शनों के माध्यम से छात्रों को जीव एवं ब्रह्म का ज्ञान कराना।

 -जीवन में ईश्वर का साक्षात्कार कर आनन्द प्राप्त कराना एवं मानव जीवन में वास्तविक ज्ञान प्राप्त कराना।

चतुर्थ प्रश्नपत्र-व्याकरण

 1. पतंजलि. व्याकरणमहाभाष्य पस्पशाह्निक

2. भट्टोजिदीक्षित. वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी कारकप्रकरण

3. वरदराज. लघुसिद्धान्तकौमुदी समासप्रकरण -शब्दों के शुद्ध उच्चारण हेतु व्याकरण का ज्ञान कराना।

 -शब्दों को संक्षिप्त करने हेतु समास से अवगत कराना एवं अनुवाद करने हेतु व्याकरण का ज्ञान कराना।

-वैदिक एवं लौकिक संस्कृत का शुद्ध उच्चारण कराना।

पंचम प्रश्नपत्र-धर्मशास्त्र

1. मनुस्मृति प्रथम और द्वितीय अध्याय

2. याज्ञवल्क्यस्मृति प्रथम आचाराध्याय

-छात्रों को स्मृति ग्रन्थों के माध्यम से आचरण पद्धति का ज्ञान कराना।

-भारतीय संस्कति की विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं का अवलोकन, उच्च आदर्शों एवं स्मृति ग्रन्थों के माध्यम से छात्रों में धार्मिक भावना तथा नैतिक भावना का विकास करना।

षष्ठ प्रश्नपत्र-पुराणेतिहास

1. व्यास. श्रीमद्भागवत पंचम स्कन्ध के प्रथम अध्याय से दसवें अध्याय तक

2. वाल्मीकि. रामायण सुन्दरकाण्ड के प्रथम सर्ग से पंचदश सर्ग तक

-श्रीमद्भागवत महापुराण के अन्तर्गत उच्च आदर्शों को स्थापित करने वाले दिव्य पुरूषों एवं महापुरूषों की जीवनी से परिचित कराना।

-श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में आये हनुमान जी के बहुमुखी व्यक्तित्व एवं उनके द्वारा किये गये कार्यों से अवगत कराना ताकि छात्र/छात्राओं के अन्दर सुषुप्त ज्ञान, भक्ति एवं वैराग्य का प्रस्फुटीकरण हो सके, जिससे समाज और राष्ट्र को लाभ मिल सके। एम.ए. द्वितीयं षाण्मासिकम् एम.ए. द्वितीय सिमेस्टर प्रथम प्रश्नपत्र-उपनिषद् एवं वैदिक वाङ्मय

1. तैत्तिरीयोपनिषत्

2. वैदिक वाङ्मय का इतिहास

-तैत्तिरीयोपनिषद् वेदों के अन्तिम भाग हैं जिसमें गुरू तथा आचार्य की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं का उल्लेख है तथा साथ ही माता-पिता व गुरू के प्रति निष्ठा, आदरभाव, सेवाभाव का भी समग्र उल्लेख प्राप्त होता है। इसी के साथ शिष्य द्वारा पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त किस प्रकार सीखे हुए ज्ञान को व्यवहार में लाना एवं उसका प्रसार करने आदि का भी उल्लेख है। वर्णित उपनिषद् में ब्रह्म को प्राप्त करने के विभिन्न द्वारों जैसे अन्न, प्राण, मन आदि का भी वर्णन है तथा कैसे आनन्द को प्राप्तकर व्यक्ति प्रसन्नचित रह सकता है आदि का भी उल्लेख है। उपर्युक्त सभी प्रसंगों के माध्यम से छात्र/छात्राओं को अवगत कराना। साथ ही उनमें माता-पिता एवं गुरू के प्रति आदरभाव को स्थापित करना। -छात्र/छात्राओं को वैदिक वाङ्मय से परिचित कराना।

 द्वितीय प्रश्नपत्र-संस्कृत महाकाव्य

1. माघ. शिशुपालवध प्रथमसर्ग

2. अश्वघोष. बुद्धचरित प्रथम और द्वितीय सर्ग

-माघकृत् शिशुपालवधमहाकाव्य एवं अश्वघोष रचित बुद्धचरित में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण एवं भगवान बुद्ध के उच्च आदर्शों से छात्र/छात्राओं को परिचित कराना। साथ ही धर्म, न्याय, राजनीति, त्याग का भाव तथा मानवोचित कार्यों का भी ज्ञान कराना। जिससे छात्र/छात्राएं भविष्य में समाज में उच्च आदर्शों की स्थापना कर सकें।

तृतीय प्रश्नपत्र-भारतीय दर्शन

 

1. सदानन्दयोगीन्द्र. वेदान्तसार

 2. लौगाक्षिभास्कर. अर्थसङ्ग्रह

3. भारतीय दर्शन का इतिहास -बिना अधिकारी , विषय, सम्बन्ध एवं प्रयोजन के किसी भी कार्य की सिद्धि सम्भव नहीं है। वेदान्तसार में जीव और ब्रह्म की एकता के लिए क्या करना उचित है और ब्रह्म को प्राप्त हुये जीव का स्वभाव कैसा हो जाता है इसकी चर्चा की गई है। ताकि सभी छात्र/छात्राएं उच्च आध्यात्मिक भावना से ओतप्रोत हो सकें। -विविध वैदिक शब्दों के अर्थों के संग्रह द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि हर सन्दर्भ में हर शब्द का एक ही अर्थ अभिप्रेत नहीं है बल्कि वह भावना और विचार से अभिप्रेत अर्थ स्वीकरणीय है।

 चतुर्थ प्रश्नपत्र-भाषाविज्ञान

 1. भाषा

 2. ध्वनिविज्ञान

 3. अर्थविज्ञान

- भाषाविज्ञान के अन्तर्गत भाषा का वर्गीकरण, उत्पत्ति, प्रमुख आधार तथा भाषा की विभिन्न पद्धत्तियों से छात्र/छात्रओं को अवगत कराना। साथ ही भाषा की मूलतम इकाई ध्वनि एवं ध्वनिविज्ञान तथा अर्थविज्ञान से भी भलीभांति परिचित कराना। भाषाविज्ञान के अध्यापन से छात्र/छात्राओं में शुद्ध उच्चारण का अभ्यास तथा सृजनशीलता का विकास कराना है।

-महाकवि दण्डी ने कहा है कि यदि शब्द रूपी ज्योति इस संसार में न होती तो यह संसार अन्धकार से आच्छन्न हो जाता। अर्थात् छात्र/छात्राओं को शब्द तत्त्व के महत्त्व तथा उसकी जीवन में उपयोगिता का ज्ञान कराना।

पंचम प्रश्नपत्र-धर्मशास्त्र

1. मनुस्मृति पंचम षष्ठ और सप्तम अध्याय

2. याज्ञवल्क्यस्मृति द्वितीय व्यवहाराध्याय

-दोनों स्मृतियों का प्राचीन समय में बहुत आदर था। यह धर्म ग्रन्थ ही नहीं अपितु मानव जीवन के लिए आचारशास्त्र है। इनके माध्यम से छात्र/छात्रओं को आचार एवं व्यवहार का ज्ञान कराना ही प्रमुख उद्देश्य है जिससे वे समाज में एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में जाने जा सकें तथा अपने में अच्छे संस्कारों को आत्मसात् कर समाजोपयोगी बन सकें।

षष्ठ प्रश्नपत्र-पुराणेतिहास

1. विष्णुपुराण प्रथम अंश के प्रथम अध्याय से पंचम अध्याय तक

 2. महाभारत शान्तिपर्व के राजधर्मानुशासन के 50 वें अध्याय से 70 अध्याय तक

-विष्णुपुराण में सृष्टि की उत्पत्ति उसका पालन एवं संहार परमात्मा द्वारा किस प्रकार किया गया, से सम्बन्धित वर्णन प्राप्त होता होता है साथ ही भगवान विष्णु की महत्ता का वर्णन किया गया है। विष्णुपुराण में उल्लिखित विभिन्न आख्यानों एवं उपाख्यानों के माध्यम से छात्र/छात्राओं को राजधर्म, दानधर्म, भगवद्धर्म एवं सृष्टि के रहस्यों का भी ज्ञान कराना है।

एम.ए. तृतीयं षाण्मासिकम्

एम.ए. तृतीय सिमेस्टर

प्रथम प्रश्नपत्र-निबन्ध और गढ़वाल के प्रमुख तीर्थ स्थल

1. निबन्ध

2. गढ़वाल के प्रमुख तीर्थ स्थल

-स्कन्द पुराण के अन्तर्गत केदारखण्ड में गढ़वाल के प्रमुख तीर्थों का वर्णन हुआ है।

 -छात्र-छात्राओं को उनके प्राचीन नाम से अवगत कराना, प्राचीन समय की मान्यता को समझना, प्राचीन संस्कृत के आधार स्तम्भ रहे तीर्थों से परिचय कराना, दूर देश से आ रहे तीर्थ यात्रियों के मन में इस देवभूमि की उच्च परिकल्पना आदि से ज्ञान होना।

 -संस्कृत निबन्ध से प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद में प्रवीणता प्राप्त करना ताकि यथासमय उन ऐतिहासिक ग्रन्थों में निहित ज्ञान-विज्ञान से परिचय मिल सके।

 द्वितीय प्रश्नपत्र-साहित्यशास्त्र और नाट्यशास्त्र

1. विश्वनाथ कविराज. साहित्यदर्पण प्रथम, द्वितीय, तृतीय परिच्छेद रसनिष्पत्तिपर्यन्त, और षष्ठ परिच्छेद

2. भरतमुनि. नाट्यशास्त्र प्रथम और द्वितीय अध्याय

-छात्र-छात्राओं को काव्य, शब्द, अर्थ, शब्दशक्तियों, रस, अलंकारों से परिचित कराना जिससे काव्य से सम्बन्धित विषयों का ज्ञान हो सके। नाट्यशास्त्र में उल्लिखित रूपक के माध्यम से छात्र-छात्राओं को नाट्य एवं नाटक की विधाओं से परिचित कराना है। जिससे उन्हें उसकी महत्ता एवं उपयोगिता का ज्ञान प्राप्त हो सके।

तृतीय प्रश्नपत्र-खण्डकाव्य और स्तोत्रकाव्य

 1. कालिदास. मेघदूत

2. पुष्पदन्त. महिम्नस्तोत्र

-कालिदास विश्वगुरू एवं कविकुल की उपाधि से विभूषित हैं उनका परिचय कराते हुए उनके द्वारा वर्णित उत्तर हिमालय के बहुत से स्थानों का परिचय प्राप्त करना. मेघ को दूत बनाते हुए यक्षों की नगरी अलकापुरी, रेवा नदी, उज्जयिनी तथा विविध पर्वतीय मार्गों की जानकारी प्राप्त करना एवं उस समय की वेशभूषा रहन-सहन, चित्रकारिता तथा आवास आदि की व्यवस्था से अवगत होना।

-गन्धर्वराज पुष्पदन्त द्वारा प्रणीत शिव महिम्न स्तोत्र से भगवान् शंकर के विशाल वैभव एवं ज्ञान से परिचित कराना एवं कर्त्तव्यनिष्ठा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना इसका प्रधान प्रयोजन है।

चतुर्थ प्रश्नपत्र- नाटिका और नाट्यशास्त्र

1. हर्षदेव. रत्नावली

2. धनंजय. दशरूपक प्रथम प्रकाश और द्वितीय प्रकाश

-रत्नावली नाटिका के माध्यम से महाराजा उदयन एवं रत्नावली के उदात्त चरित्र का वर्णन किया गया है जिससे छात्र-छात्राओं में उदात्त एवं प्रशस्त गुणों का विकास हो सके। दशरूपक के माध्यम से नाटक के दश रूपों एवं उनके विभिन्न अंगों से अवगत कराना।

 पंचम प्रश्नपत्र-काव्यशास्त्र

1. मम्मट. काव्यप्रकाश

-काव्यप्रकाश में काव्य की परिभाषा, शब्द, अर्थ, शब्दशक्तियों का उल्लेख करते हुए रस, छंद एवं अलंकार के विविध पहलुओं का अवलोकन कर इनकी बारीकियों से अवगत कराना।

 षष्ठ प्रश्नपत्र-गद्यकाव्य और चम्पूकाव्य

1. बाणभट्ट. कादम्बरी कथामुख

2. त्रिविक्रमभट्ट. नलचम्पू प्रथम उच्छवास

-चन्द्रापीड़ एवं कादम्बरी के उदात्त चरित्र से छात्रों को अवगत कराकर जीवन में उच्च आदर्शों एवं विचारों को उत्पन्न कराना ताकि वे समाज में एक उच्च आदर्श की स्थापना कर सकें।

-चम्पूकाव्यों के माध्यम से छात्रों में चम्पूकाव्य काव्य परम्परा का ज्ञान प्राप्त कराना ताकि छात्र-छात्राएं काव्यों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकें।

एम.ए. चतुर्थषाण्मासिकम्

एम.ए. चतुर्थ सिमेस्टर

 प्रथम प्रश्नपत्र-भारतीय संस्कृति और संस्कृत में अनुवाद

 उद्देश्य

-छात्र-छात्राओं को भारत की परम्परा, गौरव एवं महत्ता से अवगत कराना। -भारतीय संस्कृति, धर्म, आस्था, विश्वास, विचार एवं सर्वधर्म समन्वय की विचारधारा से ओत-प्रोत संस्कृति की मुख्य विशेषताओं से परिचित कराना।

 -हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद हेतु छात्र-छात्राओं को तैयार करना ताकि प्राचीन संस्कृत के ग्रन्थों को पढ़ने में उनकी अभिरूचि विकसित हो सके।

 द्वितीय प्रश्नपत्र-साहित्यशास्त्र

1. राजशेखर. काव्यमीमांसा

2. वामन. काव्यलंकारसूत्रवृत्ति

-काव्यमीमांसा के अन्तर्गत काव्यपुरूष की उत्पत्ति एवं ऋषि परम्पराओं का उल्लेख किया गया है जिससे छात्रों में भारतीय संस्कृति एवं आदर्शों का जीवन में निर्वहन हो सके। काव्यलंकारसूत्रवृत्ति में काव्य के सूत्रों की व्याख्या की गई है। चतुर्थ प्रश्नपत्र- संस्कृत रूपक

1. भट्टनारायण. वेणीसंहार

 2. शूद्रक. मृच्छकटिक.

 - वेणीसंहार नाटक के अन्तर्गत भीम के उदात्त चरित्र का वर्णन किया गया है। मृच्छकटिक के अन्तर्गत चारूदत्त के उदात्त चरित्र एवं नैतिक मूल्यों का उल्लेख किया गया है जिससे छात्र-छात्राओं में नैतिक विकास हो सके। पंचम

प्रश्नपत्र-काव्यशास्त्र

1. आनन्दवर्द्धन. ध्वन्यालोक प्रथम उद्योत.

 2. कुन्तक. वक्रोक्तिजीवित प्रथम उन्मेष.

 -ध्वन्यालोक के अन्तर्गत ध्वनि के सिद्धान्तों से छात्र-छात्राओं को अवगत कराना ताकि छात्र ध्वनि सिद्धान्त को समझकर काव्य के प्रति अभिरूचि बढ़ सके। वक्रोक्ति काव्य के द्वारा काव्य के उस पहलू का उल्लेख है जिससे काव्य को सरस एवं रोचक बना सकें।

 षष्ठ प्रश्नपत्र-पद्यकाव्य और गद्यकाव्य

1. श्रीहर्ष. नैषधीयचरित प्रथम सर्ग

 2. दण्डी. दशकुमारचरित पूर्वपीठिका.

-नैषध में नल-दमयन्ती के उदात्त चरित्र के माध्यम से छात्रों को उदात्त चरित्र की शिक्षा प्रदान की जा सके।

-दशकुमारचरित में दश राजकुमारों के जीवन की शिक्षाओं से छात्र-छात्राओं को अवगत कराना ताकि छात्रों का नैतिक विकास हो सके।

छात्र-छात्राएं क्या प्राप्त करेंगी

          भारत की विशाल सांस्कृतिक परम्परा से परिचित होंगे। भारत की संस्कृति, सांस्कृतिक गाथा, भारत के गौरव एवं प्राचीन भारत में उपलब्ध विविध प्रकार के ज्ञान-विज्ञान से परिचित होंगे। संस्कृत के अध्ययन स प्राचीन भारतीय संस्कृत के ग्रन्थों के अध्ययन से रूचि उत्पन्न होगी एवं उनके अनुवाद की ओर अग्रसर होंगे। इससे न केवल भारत के विविध ज्ञान-विज्ञानपरक ग्रन्थों से परिचय होगा अपितु उससे आधुनिक समाज किस तरह लाभान्वित हो सकेगा, यह प्रयास रहेगा। सारा विश्व कैसे एक कुटुम्ब की तरह रह सकेगा। वेदमंत्रों में निहित समानता के इन वाक्यों का गहन मन्थन कर वर्तमान समाज में इसे लागू कैसे किया जाय इस पर छात्र-छात्राओं का ध्यान रहेगा। वे न केवल अपने देश की संस्कृति से अवगत हो सकेंगे अपितु अपनी संस्कृति की छाप अन्य विदेशी संस्कृति को भी प्रभावित करने की क्षमता धारण कर सकेंगे जैसा कि पूर्व में स्वामी विवेकानन्द, रामतीर्थ आदि महात्माओं ने किया।

 

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