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हिन्दी विभाग


हिन्दी विभाग : एक नजर में                विभाग में कार्यरत अध्यापकः                  पाठ्यक्रम                   एलवम

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हिन्दी विभाग : एक नजर में

           हिन्दी विभाग : एक नजर में राजकीय महाविद्यालय का ‘हिन्दी विभाग’ शैक्षिक सत्र 1972-73 ई0 के दौरान अस्तित्व में आया। प्रारंभ में ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ का अध्ययन-अध्यापन स्नातक स्तर पर ही होता था, परंतु वर्ष 1975-76 ई0 से स्नातकोत्तर स्तर पर कक्षाएँ संचालित होने लगीं। हिन्दी भाषा और उसके साहित्य को प्रचारित एवं प्रसारित करने तथा नवयुवकों एवं नवयुवतियों के हृदय में हिन्दी के प्रति मृदुल अनुभूतियों का प्रस्फुटन करने में अनेक मनीषी प्राध्यापकों का योगदान रहा है। जिनमें क्रमशः प्रो0 हरिश्चन्द्र पाठक, डॉ0 गोविन्द प्रसाद शर्मा, डॉ0 सविता ढौंढियाल, डॉ0 निशा जैन, डॉ0 आशा जुगराण, डॉ0 शांतिप्रसाद डबराल, डॉ0 गंगा टोलिया, डॉ0 रुकम सिंह असवाल, डॉ0 बी. एम. शुक्ल, डॉ0 मुनीब शर्मा, डॉ0 अजीता दीक्षित, डॉ0 सुभाष चन्द्र सिंह कुशवाह, डॉ0 मुक्तिनाथ यादव उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में कार्यरत् प्राध्यापकों में श्री सुरेश चन्द्र, डॉ0 वंदना तथा शीशपाल कार्यरत् हैं।

            उत्तरकाशी महाविद्यालय का हिन्दी विभाग हेमवतीनंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर (गढ़वाल) के हिन्दी विभाग का प्रमुख शोध-केन्द्र भी है। राज्य के अन्य विभागों की तुलना में इस विभाग के स्नातकोत्तर वर्ग के छात्र-छात्राओं ने सर्वाधिक मात्रा में नेट तथा स्लेट (हिन्दी) की परीक्षा उत्तीर्ण की है। अनेक शोधार्थी विभाग में वरिष्ठ प्राध्यापकों के निर्देशन में शोध कर रहे हैं। विभाग के अनेक छात्र-छात्राएँ अपने शोधकार्य एवं विलक्षण योग्यताओं के अनुकूल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान कर रहे हैं। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में हिन्दी विभाग के भूवपूर्व छात्र-छात्राएँ साधनारत् हैं। वर्ष 2014 में डॉ0 गणेश देवी के संपादन एवं नेतृत्व में ‘भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण’ के अन्तर्गत उत्तराखण्ड की भाषाएँ, खण्ड-30, भाग-1 के तहत विभाग के प्राध्यापकों की महती भूमिका रही है। गढ़वाली, कुमाउनी तथा उत्तराखण्ड की अन्य जनजातीय भाषाओं के क्षेत्र में पारिस्थितिकी एवं सांस्कृतिक संदर्भों को केन्द्र में रखकर सार्वभौमिक विकास के परिप्रेक्ष्य में अवगाहन एवं अध्ययन का कार्य विभाग द्वारा संचालित हो रहा है। इस अध्ययन का विशेष उद्देश्य पहाड़ी क्षेत्रों, जंगलों में जीवन-यापन करने वाले समुदायों और हाशिए के समूहों की भाषा को समझना और उनका दस्तावेजीकरण करना है।

            हिन्दी विभाग में सन् 2011 ई0 से सत्रीय पाठ्यक्रम पद्धति का आरंभ स्नातकोत्तर स्तर पर हुआ। तत्पश्चात् सन् 2015 ई0 से स्नातक स्तर पर हिन्दी विषय के विद्यार्थियों को भी इस नवीन सत्रीय पाठ्यक्रम पद्धति के अन्तर्गत सम्मिलित कर लिया गया। स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम के निर्माण में विभाग के प्रभारी डॉ0 सुरेशचन्द्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रायः विभाग में ‘लोक साहित्य’ तथा ‘जनपदीय साहित्य’ के अध्ययन एवं अध्यापन पर विशेष बल दिया जाता है। जिसका लक्ष्य छात्र-छात्राओं को उनके वर्तमान के साथ-साथ विगत् रीतिरिवाजों, परंपराओं, आस्थाओं, लोकविश्वासों और लोक-संस्कृति से अवगत कराना है। महाविद्यालय के हिन्दी विभाग का अपने उदय एवं आरंभ से ही यह पुनीत प्रयास रहा है कि किस प्रकार प्रत्येक शिक्षार्थी के आचार एवं विचारांमें विषय के परिज्ञान के साथ-साथ मूल्य, नैतिक संस्कार, परदुखकातरता, नवउद्भावना शक्ति, मानवतावादी दृष्टि, समायोजन शैली को जाग्रत किया जाए; साथ ही वर्तमान समय की दुश्चिंताओं, दबाओं, विडम्बनाओं से किस प्रकार जूझा जाए तथा राज्य एवं राष्ट्र के निर्माण में किस प्रकार अपना योगदान दिया जाए। इस विषय पर विभाग के प्रत्येक प्राध्यापक की दृष्टि आरंभ से केन्द्रित रही है। कदाचित् इस लक्ष्य एवं विचार-पद्धति के कारण विभाग से शिक्षा प्राप्त करके समाज एवं राष्ट्र-निर्माण में योगदान देने वाला लगभग प्रत्येक विद्यार्थी सामाजिक सरोकारों के प्रति संवेदनशील है। समय-समय पर विभाग द्वारा विविध भारतीय एवं भारतीय-इतर भाषाओं, पर्यावरण-चेतना, जनजातीय समाज भाषा एवं संस्कृति, स्त्री-शिक्षा, कुपोषण, मद्य-पान, नशाखोरी, क्षेत्रवाद, स्वच्छता, परम्परागत खाद्य-पदार्थों, सामाजिक एवं आर्थिक असमानता, वर्ग-भेद, मानव तस्करी आदि जटिलताओं पर व्याख्यान, जनजागरण, परिचर्चा, नुक्कड़ नाटक तथा संगोष्ठियों का आयोजन करता रहा है। हिन्दी विभाग में वर्तमान शैक्षिक सत्र में डॉ0 सुरेशचन्द्र के निर्देशन में ‘मध्यकालीन हिन्दी साहित्य’ तथा ‘उत्तराखण्ड की विविध भाषाओं तथा लोक-साहित्य’ पर अनुसंधान करने वाले शोधार्थियों में-प्रतिभा चौहान, श्री प्रदीप सिंह प्रमुख हैं। विभाग से ही ‘अनुसंधानवाटिका’ शोध पत्रिका का प्रकाशन भी वर्ष 2011 से निरंतर गतिमान है। स्नातक स्तर पर प्रथम अध्ययन सत्र में सीटों की संख्या 150 तथा स्नातकोत्तर प्रथम अध्ययन सत्र में यह संख्या 30 है।

         वर्ष 2000 ई0 से वर्तमान तक अनेक विद्यार्थियों ने विभाग से स्नातकोत्तर तथा विद्यावाचस्पति की उपाधियाँ प्राप्त की हैं। ये सभी विगत विद्यार्थी विविध सामाजिक क्षेत्रों में अहर्निश अपना योगदान दे रहे हैं। माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, पुलिस, प्रशासन इत्यादि क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले विद्यार्थियों में कुछ प्रमुख नाम हैं-डॉ0 बचनलाल, डॉ0 विक्रम सिंह, डॉ0 राधा रावत, डॉ0 जगदीश चन्द्र, डॉ0 दयानंद, डॉ0 निरंजन, डॉ0 सुनीता, डॉ0 दिव्या सुथार, डॉ0 पवन, डॉ0 कमलेश जैन, डॉ0 रामकुमार, डॉ0 प्रीतिरानी, डॉ0 अंजूरानी, डॉ0 मीनू हुरिया, डॉ0 कपिल थपलियाल, डॉ0 यमुना प्रसाद रतूड़ी, श्री भास्कर थपलियाल, डॉ0 अंजू सेमवाल, डॉ0 चन्द्रप्रभा मौर्य, डॉ0 मीना नेगी, डॉ0 स्वराजी विद्वान, डॉ0 किशोरीलाल, श्रीमती रेखा, श्री रादेश कुमार, श्री धनराज, श्री प्रवीण, श्री दिनेशलाल, डॉ0 बद्रीप्रसाद, ममता, ऐपिन सिंह, शीशपाल सिंह, प्रदीप प्रसादद कंडवाल, संध्या चमोली, अनीता भट्ट, राजवीर सिंह, संगीता भट्ट, भवान राम, कुसुम लता, टीकाराम सिंह, मीना कलूड़ा, दीपा, प्रवीण भट्ट, शोभन देई, अर्चना भट्ट, मंजरी, राजपाल, केशव रावत, गुरूदेव नौटियाल, अमृता, रुक्मिणी, अंजना, शिल्पा देवी, इन्द्रमणि चमोली, रेखारानी, प्रतिभा, ओमप्रकाश सेमल्टी, शरद कुमार, डॉ0 विजय राणा, मनोरमा रावत, माधव भट्ट, शशि नौटियाल, ममता आदि। विभाग द्वारा प्रतिवर्ष मार्च के मध्यावधि में शैक्षिक भ्रमण के अतिरिक्त समय-समय पर परिचर्चा, रंगमंचीय आयोजन, विभागीय परिषद के कार्यक्रम, सामाजिक सरोकारों से सम्बद्ध कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।

विभाग में कार्यरत अध्यापकः

नाम शैक्षणिक योग्यता विशेषज्ञता प्रोफ़ाइल
 डॉ0 सुरेश चन्द्र एम0एम0, एम0 फिल्0, यू.जी.सी.-नेट, पीएच0डी0, मध्यकालीन हिन्दी साहित Download
डॉ0 वंदना एम0एम0, पीएच0डी0 कथा साहित्य  
श्री शीशपाल सिंह एम0ए0, स्लेट    

पाठ्यक्रम

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